थारु भाषामा अनुवादित बाल कथा : मैयाँ

 






लेखिका: बिद्या सापकोता

अनुवाडक:- माेतीराम चाैधरी `रत्न


बर्काबुंडक पानी पर्टिरहे । डाई-बाबा काममे गैल रहिट, अभिन घुमल नै रहिट । सनिच्चरके डिन स्कूल विडा रहे टबे राजु घरम अक्केली रहे । कालुक फेन विहानसे अत्तापत्ता नै रहे । पानी फेन बहुट अाइटा, पिरयारीमे ठर्हियाके अक्कली रुई लागल ऊ । भल अट्रा भारी अाइ लागल रहे कि,काठिक चाङ्ग गिराइ लागल रहे । चिरै रुख्वम क्रुकुक्क परके बैठल रहिट । सङ्घरियन कोई फेन आई नै सेक्ले रहिट । बिहानसे पानी अाइटा अभिन रुकल नै हाे। भुख लागके फेन राजुक छटपटी हुई टहिस। रोके वकर आँखी लाल हाेरख्ले रहिस। पानी अइलक कारन हुई साइड, अाँजर-पाँजरके काेई फेन राजुहे रूईट नै सुनल ।

रुइट-रुइट राजु निडाई लागल रहे। वकर पन्ज्रे आके कालु टुक्रुक्कसे बैठल । पानीलेके गिड्राहस भिजल कालुहे डेखके राजु खुसी हुइल । कालु टै कहाँ गैल रहिस? महि यनँ अक्केली डर लागटेहे......... ।राजु उहिहे ठपठपैटी कहल । कालु डरैटी ट्वाल्ल परके हेर्टीरहल। 

ए ! टै काहे महि ट्वाल्ल परके हेरटे हँ ? टुहि फेन टे जार लागल बा ना, रुक एक्के घचिक । राजु अपन कपरा खोजके कालुहे डेहल । कालु फेन डराइलहस बिल्गटहे । राजुक सँगे ऊ ठपक्कसे बैठल । कालु वोले नै सेके टाैन वकर चम्कनन आँखी, लम्मा-लम्मा माेछके भासा राजु तुरुन्टे बुझे। ढिरेसे पानी फेन रुक्टि रहे । अाघे भुखलेके मरेजैसिन रहल राजु कालुहे भेटाके अघाइलजसिन हाेगिल । झुसा पानी बहना डगर छेकडेले रहे। पानी बहरके छेग्रिनके खाेर भरे लागल रहे, कालुले कुडुक्के पानी जैना नहर बना डेहल । 

डुनुजे भुखाईल रहिट। डाई हुकनके लाग चिक्ठीमे मिझ्नी पकाके ढर डेले रहिन । राजु छुटी रहे, कालु राजुक मुह हेरल अउर राजुहे अपन बाेँकु चहुराके मिझ्नी निकारल व डुनुजाने मपलके खैलाँ। अक्केली डरैटी रहिट व एकडाेसरसँगे हाेके डुनुजे एकडम खुसी हूइलाँ। 

साँझ हुइल टे डाई बाबा अइलिन । कालुहे राजुकसँग बैठल डेखके हुँकरे डङ्ग परलै । टाैन कालु पहिलजस्टे जस्टे नै रहे । डरनइलहस, चकुवाइलहस बाहेर हेर्टीरहे। 

कालु का हुईल टुहि ? राजु सुम्सुमैटी पुछल टे अाँखी भर्के अाँस लेले राजुकसँग अउरे चपटके बैठल । 

डाई हेर ना टम्नेहेसे यी डराइटा । का हुइल कटिकिल रुइ लागट व डराइलहस बिल्गटा, कालु भिज्टि इलक, छेग्रिनके खाेरमे पानी पैँठलक, मिझ्नी खैलक सब बाट राजु डाई बाबाहे सुनाइल । 

राजु ज्या फेन बिगारडेनन, खैना फेन खा डेना कहिके डाई उहिहे वट्ठीका खेटुवाहाेर छाेरे कालुहे लैगिल रहि टाैन कालु टे अाग्गेहे अा पुगल रहे । डाइहे हिँकनहे बैठल डेखके अचम्म लाग्ठिन । एकठाे विलरीया अपन वच्चाहे मैयाँ करल डेख्ठि टाैन अपने मनै हाके फेन उहीहे नै मजा मनलकमे डुःख लग्ठिन ।

लेउ अाउ ! मिझ्नी खाई डाई बलैली। राजु अाइल टाैन कालु डराके वहै बैठल रहल । कालु, टै फेन अा न, डाइ मैयाँले बलैली ! राजु व कालु डुनुजे खुसि हूइटी सँगे बैठके दुधभाट खैलाँ ।


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