थारू भाषी गजल

 


प्रबीन बौखही

कोरोना कोरोना कठै कहासे सिलिक गिल,

देेेख देख्ति आज मोरे मन बिलिक गिल।
महिन देख्ति किल सब्जे डरके मारे साईड लग्ठै,

मेरुवक भरठर जस्त, आज सम्बन्ध चिटिक गैल।
सारासंसार डर,त्रास उटमुटावन मे जियटै,

डेस डुनिया खाडट- खाडट घर-घरमे छिटिक गिल।
कोरोनासे चेपुवा पाके डूरसे हेरठु छाई,जन्नी हे,

एकघचिक फेन नै छोर्ना छाई, आज मोर जलक गिल।
मनैनसे मनै डरैना का डीन डेखे परटा हजुर, 

प्यारसे मोर जन्नी भाटक टेप्रि डूरेसे झटक गिल।                 

(होमआईसोलेलनमे  बैठल बेला)

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